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दुआ ए सहर

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या मफ्ज़ई इन्दा कुर्बती व या ग़ौसी इन्दा शिद्दती इलैका फज़ेतो व बेकस तग़स्तो व बेका लुतो ला उलूज़ो बिसेवाका वला अतलुबुल फरजा इल्ला मिन्का फाआ ग़िस्नी व फर्रिज अन्नी या मई यकबलुल यसीरो व याफू अनिलकसीरे, इक्बल मिन्निल यसीरा वआफो अन्निल कसीरे इन्नका अन्तल ग़फूरूर रहीम । अल्लाहुम्मा इन्नी अस्अलोका ईमानन तोबाशेरू बेही कल्बी व यकीनन सादेकन हत्ता आलमा अन्नाहू लई यूसीब्बनी इल्ला मा कतब्ता ली व रज्जैनी मिनल रैशे बेमा कसम्ता ली या अरहमर राहेमीन। या उद्दती फी कुर्बती व या साहेबी फी शिद्दती या वलीई फी नेमती व या गायती फी रग़बती अन्तस सातेरू औरती वल आमेनू रोअती वल मुकीलो अस्रती फाग़फिरली ख़तीअती या अरहमर राहेमीन।

⭕ मुआविया ल.अ. ने ख़ुद एतेराफ़ किया कि मैं अली इब्ने अबितालिब अलैहिस्सलाम के साथ वही किया जो ख़ोलफ़ा ने किया !!

⭕ मुआविया ल.अ. ने ख़ुद एतेराफ़ किया कि मैं अली इब्ने अबितालिब अलैहिस्सलाम के साथ वही किया जो ख़ोलफ़ा ने किया !! जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम सरीर आराये ख़िलाफ़त हुए और माविया ने मुख़ालिफ़त शुरू की तो ख़लीफ़ा अव्वल के साहबज़ादे मोहम्मद बिन अबिबकर ने माविया को ख़त लिखा कि जिसमें बनी उमय्या के कबाएह और अमीरूल मोमेनीन की फज़ीलतों को बयान करते हुए माविया को इस अम्र पर उभारा कि वह हज़रत अमीरूल मोमेनीन की मुताबेअत करे वरना अज़ाबे आख़िरत के लिये तैयार हो जाये। माविया ने इस ख़त के जवाब में मोहम्मद बिन अबीबकर को यह ख़त लिखा : तर्जुमा :- यह ख़त है माविया बिन सख़र की जानिब से अपने बाप को ऐब लगाने वाले मोहम्मद बिन अबीबकर की तरफ अम्मा बाद, मुझे तेरा ख़त मिला, जिसमें तूने ख़ुदा की कुदरत व अज़मत और सुतूत का तज़किरा किया है, जिसका वह अहल है और उस फज़ाएल का ज़िक्र किया है जिनकी वजह से ख़ुदा ने रसूलुल्लाह को बरगुज़ीदा किया है। इसके साथ तूने ऐसी भी बहुत सी बातें लिख दी हैं जिनसे तेरी कमज़ोरी और तेरे बाप की मलामत व ज़लालत ज़ाहिर होती है। तूने इस ख़त में अली इब्ने अबीतालिब की फज़ीलत और उनके क़दीम साबिक खुसूसियात और र...

11 फ़रवरी 1979 इंक़ेलाबे इस्लामी ईरान

शियाने ईरान का ये क़याम 15 खुरदाद 1342 हिजरी शीन मुताबिक 5 जून 1963 को कायद अज़ीमुश्शान आयतुल्लाह अलउज़मा इमाम ख़ुमैनी की, शाही कारिन्दों के हाथों गिरफ़्तारी के बाद, कुम तेहरान, वरामीन और मुल्क के गोशे व किनार में मुसलमानों के दिलेराना क़याम से शुरू हुआ... 12 बहमन, 1357 हिजरी शीन मुताबिक 1 फरवरी, 1978 को क़ायदे इन्क़ेलाबी इस्लामी वतन वापस तशरीफ लाये और मिल्लत मुसलमान ने अपर्ने कायद का शानदार इस्तेक़बाल किया, इमाम ख़ुमैनी ने आरज़ी हुकूमत का सद्र, इंजीनियर महदी बाज़रगान को मुकर्रर किया और 22 बहमन 1357 हिजरी शीन मुताबिक 11 फरवरी 1978 को इस्लामी इन्केलाब, मुस्लमानों की मुश्तरका जिद्दो जेहद से काम्याब हुआ ("क्याम खुनीन शिया व रसूल तारीख़े इस्लाम", मोअल्लिफ अब्दुस् समद इस्लामी, के इक़्तेबासात से शियों के क़याम का यह मुख़्तसर खाका तैयार किया गया है, इसके अलावा मुलाहिज़ा हो "मरवज्जुज़ ज़हब, मोअल्लिफ़ मसऊदी और तारीख़े तबरी) और इस तरह शिया मुस्लमानों की वज देरीना आरज़ू पूरी हो गयी जिसके लिये चौदह सौ साल से जिद्दो जेहद करते चले आ रहे थे, अलबत्ता यह जिद्दो जेहद हज़रत इमाम महदी (अतफ़...

करबला की मुख़्तसर तारीख़ और रौज़ा ए अब्बास अलैहिस्सलाम की तामीर

करबला की मुख़्तसर तारीख़ और रौज़ा ए अब्बास अलैहिस्सलाम की तामीर अल्लामा अब्दुल रज़्ज़ाक मौलवी अपनी किताब क़मर बनी हाशिम तबअ नजफ़े अशरफ़ के स० 114 पर तहरीर फ़रमाते हैं कि हजरत अब्बास के लाशे को इमाम हुसैन के गंजे शहीदा तक न ले जाने की दो ही वजहें अरबाबे मक़ातिल ने तहरीर की हैं। एक यह कि उनका जिस्म इस दर्जे पारा पारा था कि इमाम हुसैन उसे उठा ही न सके दूसरे यह कि हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम ने वसीयत की थी कि मेरी लाश ख़ैमे तक न ले जायी जाये क्योंकि मैंने सकीना से पानी का वादा किया था और उसे पूरा न कर सका। लिहाज़ा मुझे उससे शर्म आती है। यह दोनों वजहें दुरूस्त नहीं हैं, क्योंकि हज़रत इमाम हुसैन हर हाल में लाशे को ख़ैमे में ले जा सकते थे। वह इमामे वक़्त थे, उनके यह राय कायम करना कि वह लाश को ले जाने पर क़ादिर ही न हो सके यह दुरूस्त नहीं है। अस्ल वजह यह है कि हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम यह चाहते थे कि हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम का लाशा अलाहिदा ही दफ़्न हो ताकि उनका मक़बरा अलाहिदा ही तामीर किया जाये और जलालत व अज़मते शहादत के बाद भी ता क्यामे क़यामत कायम रहे। मैं कहता हूं कि मज़कूरा वजूहात कसीर कुत...

हज़रत अब्बास का शिम्र को मुंह तोड़ जवाब

हज़रत अब्बास का शिम्र को मुंह तोड़ जवाब जब शिम्र ने शबे आशूर हज़रते अब्बास अलैहिस्सलाम को अमान नामे की पेशकश कि तो  यह सुनते ही उन लोगों ने बड़ी दिलेरी के साथ अमान नामे को ठुकराते हुए कहा "ख़ुदा तुझ पर और तेरी अमान पर लानत करे हमें तू अमन देता है और फ़रज़न्दे रसूल अलैहिस्सलाम के लिये अमान नहीं। "सैय्यद इब्ने ताऊस फ़रमाते हैं : हज़रत अब्बास ने डान्ट कर फ़रमाया ख़ुदा तुझे दाखिले जहन्नुम करे, और तेरी अमान पर लानत करे। ऐ दुश्मने ख़ुदा हमें मशविरा देता है कि हम अपने भाई और आक़ा हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को छोड़ कर मलाऊन की ताअत में दाखिल हो जायें। यह सुनते ही शिम्र मलऊन आग बगूला हो कर गैज़ो गज़ब के आलम में अपने लश्कर की तरफ़ वापस चला गया।  📚(नासिखुल तवारीख जिल्द ... स० 243, जलाउल ओयून स० 198, दमअए साकेबा स0 324, मक्तले अवालिम स० 79, तोहफ़ए हुसैनिया स० 119, तारीखे आसिम कूफी स० 267) मखज़नुल बुका, मुल्ला सालेह बरगानी मीम 6 तबअ ईरान सन् 1299 माएतीन फी मक़्तलुल हुसैन स० 457 तारीखे़ तबरी जिल्द 6 स० 237    📚ज़िकरुल अब्बास अलैहिस्सलाम, अल्लामा नजमुल हसन करारवी साहब मरहूम ...

नक़्शे ज़िंदागानी हज़रते अब्बास अलैहिस्सलाम

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नक़्शे ज़िंदागानी हज़रते अब्बास अलैहिस्सलाम  आप का नाम : अब्बास बाप का नाम : हज़रत अली मां का नाम : फ़ातिमा किलाबिया मां की कुन्नियत : उम्मुल बनीन दादा का नाम: हज़रत अबूतालिब दादी का नाम : फ़ातिमा बिन्ते असद  नानी का नाम : लैला बिन्ते शहीद जौजा का नाम : लुबाबा भाईयों के नाम : अब्दुल्लाह, जाफर, उस्मान फ़रज़ंदों के नाम : फज़ल (मोहम्मद) कासिम, उबैदुल्लाह तारीखे विलादत : 4 शाबान सने विलादत : 26 हिजरी  यौमे विलादत : सेहशन्बा (मंगल) मक़ामे विलादत : मदीन-ए-मुनव्वरा कुन्नियत : अबुल फ़ज़ल, अबुल क़ासिम, अबु कर्बा लकब : सक्का अफज़लुश्शोहदा उम्र शरीफ़ : 34 साल चन्द माह सने शहादत : 10 मोहर्रम सन् 61 हिजरी यौमे शहादत : जुमअतुल हराम  वक़्ते शहादत : बादे ज़ोहर सबब शहादत : हिमायते इस्लाम, तलबे आब मदफ़न : कर्बला, इराक़ 

ख़ुतबा ए मौला अब्बास अलैहिस्सलाम

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हज़रते अब्बास (अ.स.) ने ये ख़ुत्बा खाना ए काबा की छत पर 8 ज़िल्हिज सन 60 हिजरी में दिया जब इमाम हुसैन (अ.स.) मक्का से कर्बला की तरफ रवाना हो रहे थे, "तमाम हम्द अल्लाह के लिए हैं जिसने बैतुल्लाह (काबा) को इज़्ज़त बख़्शी मेरे आक़ा इमाम हुसैन (अ.स.) के वालिद (हज़रत अली (अ.स.)) की आमद से अमीरूल मोमेनीन की आमद से पहले ये घर सिर्फ़ पत्थरों के घर के अलावा कुछ नहीं था। अमीरुल मोमेनीन (अस) की खाना ए काबे में आमद के बाद ये क़िबला बन गया..." 📚तारीख़ी ख़ुत्बात,सबक़ 1